बस्तर कल्चर

यह ब्लोग केवल बस्तर के सातों जिलों के संस्कृतियों एवं रहन सहन तथा खान पान का एवं बोलीयो एवं लाइफ स्टाईल का उल्लेख किया गया है ।

भाषाएं एवं बोलियां :-

बस्तर  में मुख्य रूप से  गोण्डी एवं हल्बी बोलीं बोली जाती है ,  इसमें ज्यादातर   लोग गोंडी धर्म एवं कोया समाज के लोगों ने  गोंडी बोलते हैं । और हल्बी बोलीं   हल्बा समाज  एवं  अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों ने   हल्बी बोलीं का प्रयोग करते हैं।  और   उत्तर बस्तर कांकेर जिले में मुख्य रूप छत्तीसगढ़ी एवं  हिंदी, गोंडी , हल्बी बोलीं बोली जाती है तथा जगदलपुर , कोण्डागांव, एवं नारायणपुर  में भी  हल्बी, गोंडी, छत्तीसगढ़ी एवं हिंदी  बोलने वाले लोग मिलेंगे।  और  बीजापुर जिले में  तेलगु भाषा एवं हल्बी, गोंडी, एवं हिंदी बोलने वाले लोग मिलेंगे। और सुकमा जिले में दोरला जनजाति के लोग दोरला बोलीं एवं  हल्बी, गोंडी, तेलगु  हिंदी  बोलने वाले लोग निवास करते हैं।  

संस्कृति:-

बस्तर की संस्कृति मुख्यत: डोलनाचा गौर सिंग पहन  कर नाचते हैं , ये अक्सर शादियों , जात्रा ,मेला , मंडाई   में  गौर सींग पहन कर  नचा नाचा जाता हैं , ये की आवाज हैं  , वो एक डोल की आवाज  कम  से कम  5-10  किलोमीटर दूर तक जाती हैं, और     महिलाए  गुज्जीड़  के साथ  डोल की धुन के आनुअनु नाचती है  । और   गाना  पुरुष एवं महिला सब मिलकर  नानो वैया  गाना गायी जाती है ।   गाना शादी में अलग-अलग और मेरा मंड़ाई में अलग-अलग तरह की गायी जाती है । 

खान पान :-(व्यंजन)

मुख्य रूप से बस्तर का खान पान (व्यंजन )  है चावल और पेज है , और इसके अलावा अलग-अलग मौसम में अलग-अलग तरह के   प्राकृतिक भोज्य पदार्थ  हमेशा मिलते रहता हैं  । जैसे -। बारिश के मौसम में  कंद मूल फल छाती (मशरूम ) वो भी प्राकृतिक मशरूम   भाजी भात  ये सबसे ज्यादा मशहूर है बस्तर में   भाजी बात  तथा साथ में मौआ फूल   और मोटे अनाज कुटकी ,राघी,  मंडियां  छापड़ा  आदि । शाकाहारी बहुत ही कम मात्रा में है  ज्यादातर मांशहारी  लोग है  मांशहारी में   मुर्गा, बकरा, सुहर ,  मछली,  अंडा ,   आदि है ।

मदिरापन :- 

बस्तर के सभी जिलों में  कांकेर को छोड़कर सभी जिलों में मदिरापान ज्यादातर  शुध्द  देशी सल्फी, व  मौवे का दारू, एवं चावल से बनी लंदा , तथा ताड़ी, और चीन रस,  सुरम,   कोई भी त्येहार  शादी पार्टी   में  उपयोग करते हैं । और मेहमानों को  सुहागत  के रुप में भी ( Welcome celebrate ) के  रुप में भी  बड़ी खुशी के साथ पीते हैं , इसी से ही प्यार मोहब्बत बाटते है । परंतु वर्तमान में बहुत ही कम मात्रा में इसका सेवन करते हैं ।

बस्तर के सभी जिलों में  कांकेर को छोड़कर सभी जिलों में मदिरापान ज्यादातर  शुध्द  देशी सल्फी, व  मौवे का दारू, एवं चावल से बनी लंदा , तथा ताड़ी, और चीन रस,  सुरम,   कोई भी त्येहार  शादी पार्टी   में  उपयोग करते हैं । और मेहमानों को  सुहागत  के रुप में भी ( Welcome celebrate ) के  रुप में भी  बड़ी खुशी के साथ पीते हैं , इसी से ही प्यार मोहब्बत बाटते है । परंतु वर्तमान में बहुत ही कम मात्रा में इसका सेवन करते हैं ।

  पुजा पाठ :-यहां बस्तर में सबसे ज्यादा पुजा पाठ में विश्वास नहीं रखते है , बस्तर में अधिकांश प्राक्रतिक  को मानने वाले लोग निवास करते हैं , हमारे लिए प्राक्रतिक ही भगवान है ,  इसलिए प्राक्रतिक को ज्यादा मानते हैं क्योंकि हमारे दैनिक जीवन में हर चीज प्राक्रतिक से ही पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होती है । जैसे :- जल, जंगल, जमीन,   इसलिए  इसे  बडीं समझदारी से सम्भालकर  रक्षा की जाती है ।  और जो भी इंसान प्राक्रतिक को मानता है उसमें बहुत शक्तिशाली होता है , और ज्ञानी भी होता है प्राक्रतिक की शक्ति प्राप्ति होती है  कभी आप  आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जायेंगे तो   ये सब देखने को मिलेगा । आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान  पश्चिम बंगाल, आदि राज्यों में ये सब देखने को मिलता है , परंतु बस्तर में अधिकांश सभी जिलों में   मुख्य रूप से प्राक्रतिक को मानने वाले लोग हैं।

व्यवसाय:-
बस्तर संभाग में मुख्य रूप से सरकारी नौकरी पर   ही निर्भर करते हैं ज्यादातर  और   मुख्य रूप से  खेती  किसान   ही  ज्यादा   की जाती है    इसलिए यहां जो आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब है , और  मजदुरी करने के लिए  दुसरे राज्यों में भी  प्रवास हो जाते हैं ।

खेती

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